समाज में अभाव की, संसार में स्वभाव की
रंगभेद निराली है,अपनों ने बैरी मानी है
छूना तो दूर पास में, आने की न ये ठानी है
काले और गोरे भेद का, लोगों ने नींव तानी है.
लोगों ने नींव तानी है?..
यह भेद है देश की, गरीबता की विश्व की..
करना वही काम है, जो आज है वह कल है
त्याग दो तुम भेद को, स्वीकार को चिंतन को
चर अचर जड़े रहे, मनुजता के लिए खड़े
सांस जो तुममें है, वही सांस उन में है
धरा में एक ही रहते हैं, रंगों में भेद करते हैं.
रंगों में भेद करते हैं?..
यह भेद है देश की गरीबता की विश्व की
काले गोरे समान है सभी में एक प्राण है
स्वीकार लो इस सत्य को पा लो स्वयं देवत्व को
काले और गोरे रंग का हम भेद क्यों करते हैं
हम भेद क्यों करते हैं?..
यह भेद है देश की गरीबता की विश्व की..
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