जलचित्र पड़ा धरती पर धरती प्रस्फुटिक हो पड़ी बीज रूपी किनारा लिए धरती स्वयं से फट गई पानी,पौरुष,खनिज समर्पण धरती बीज को प्रदान की सहसा बालक जैसे बीज यौवन जैसे उठ खड़ी रौशनी देकर किया सहारा सूरज उस पर कृपा किया यौवन पौधा बढ़कर अब शाखाओं में फैल गया उम्र दराज समय से बढ़े नन्हे फूल प्रफुल्लित हुए सूरज की किरणों का आश्रय पाकर फूल फल में बदल गए फल लगे अनेकानेक बालक आए एक से एक कही पत्थर कही डाली पर झूल के फल को तोड़ लिए खुशी बच्चों का देखकर यौवन पौधा खुश हुआ सारे फल समर्पित कर मुस्कुरा के हंस दिया जलचित्र पड़ा धरती पर धरती प्रस्फुट…
यह भेद है देश की, गरीबता की विश्व की समाज में अभाव की, संसार में स्वभाव की रंगभेद निराली है,अपनों ने बैरी मानी है छूना तो दूर पास में, आने की न ये ठानी है काले और गोरे भेद का, लोगों ने नींव तानी है. लोगों ने नींव तानी है?.. यह भेद है देश की, गरीबता की विश्व की.. करना वही काम है, जो आज है वह कल है त्याग दो तुम भेद को, स्वीकार को चिंतन को चर अचर जड़े रहे, मनुजता के लिए खड़े सांस जो तुममें है, वही सांस उन में है धरा में एक ही रहते हैं, रंगों में भेद करते हैं. रंगों में भेद करते हैं?.. यह भेद है देश की गरीबता की विश्व की काले गोरे समान है …
बारिश मुझे पसंद है जिसकी बूंद से छिप जाते है सारे दर्द रुक जाती है सारी चेहरे की आहट थम जाता है वे सारे पल जो कभी मेरा हुआ नहीं मुश्किलें कम होती है उलझने दूर होती है , कोई नहीं देख पाता मेरे आंसुओं को समा लेती है अपने में मेरे दुखी लम्हों को छू लेते है मेरे भावनाओं को जिस कोई देख नहीं पाया पा लेता हु अपने आप को जिसे स्वयं न जान पाया दूर हो जाते है भीग कर मेरे वो सारे दोष जिसकी जाल से मैं अब तक ढका रहा पा लेता हूं अपने आप में ईश्वरत्व की छाया मुझे बारिश पसंद है यह मैं आज जान पाया
देश शहीद के संस्मरण की, लाल मशाल हाथ में धड़ पड़ा जमीन पर, कटार लिए हाथ में। चल रही लड़ाई थी, है हुड़दंग समाज में कर गुजरने हर कड़ी को, जैसे इस संसार में। हर पल जान चली जाती, ना देखे मौत की घड़ी कर गुजरते थे हर काम, जैसे कोई फुलझड़ी। ना मौत को यह देखे, ना बंधु समाज को परखते देश के नाम संस्मरण में, नया अध्याय को लिखते। देश की शान को बढ़ाने, वीर देखो चल पड़े पीछे वीर गाथा के लिए, इतिहास के पन्नों में जड़े। लक्ष्मी राणा भगत बन, देश की आन के लिए खड़े वीर देखो हाथ में, बंदूक लिए चल पड़े। दुश्मनों के भेद को, मिटाने के लिए चले मतभेद इसी दुनिया में, अ…
रही धार इन तलवारों में , जो चलती हैं रणभूमि में। चमक उठती वीरो से तेज, जैसे अर्जुन,कृष्ण अनेक देश भक्ति का नारा इनमें खून भी इनमें धारा जैसे रही धार इन तलवारों में , जो चलती हैं रणभूमि में। शहीद होते निर्भिक हर रोज।। जैसे शेर की बीहड़ दौड़ करते हृदय देश के नाम , सजक समर्पण जीवन धाम वीरों के दीपक जलते हर शाम। इन नौजवानों से सीखो इन वीरों से , जो प्राण छोड़ दिए शरीर से । रही धार इन तलवारों में , जो चलती हैं रणभूमि में। इनकी अमर गाथा में सुनाऊं, बिस्मिल,भगत,सुखदेव बन जाऊं। समय, क्षण जुदा सब करती, विजय सदा, संघर्ष की होती। होता इन्हे अघात पी…
पथिक पथ में गमन तू कर निश्छल होकर बढ़त चल झीर संजोकर निश्चय कर एक लक्ष्य तू पूरा कर पथ में आते कठिन विभोर जिसे देख न हो झकझोर चार रास्ते एक किनारे आ गए तेरे परीक्षा प्यारे पथिक पथ में गमन तू कर एक लक्ष्य संजोकर चल... मन मीठी मुस्कान तू भर सही निर्णय का ध्यान कर मिली सफलता उम्मीदों से किरण बिखेरी आंसुओं से निर्भय वचन बना दिया पथ प्रदर्शक कर दिया पथिक पथ में गमन तू कर एक लक्ष्य संजोकर चल...
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