पृथ्वी के आँसू का अनुरोध/स्वीटी

सुनो, ऐ मानव, मेरी पुकार सुनो,
दर्द से भरी मेरी गहरी धार सुनो।
कोख में क्यों बेटियां मारी जाती हैं?
दहेज की आग में क्यों जलती जाती हैं?

घरेलू हिंसा क्यों बनी परंपरा है,
क्यों नारी का सम्मान सिर्फ वचनभरा है?
बलात्कार की चीखें इंसानियत को झकझोरती,
न्याय की राहें क्यों कमजोर होती?

प्रकृति भी अब सवाल करती है,
क्या इंसान ने उसे बस जख्म दिए हैं?
हरियाली छीन, रेगिस्तान बनाए,
ग्लोबल वार्मिंग से बर्फ पिघलाए।

शिक्षा का दीप हर घर में जलाओ,
दहेज और हिंसा के जख्म मिटाओ।
नारी के सपनों को उड़ान दो,
हरित भविष्य का सम्मान दो।

मेरे आँसू नई शुरुआत चाहते हैं,
तुमसे इंसानियत का साथ चाहते हैं।

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