नारी का सच सौंदर्य/स्वीटी

नारी का सौंदर्य न ठहरता सीमाओं में,
न बंधता वह केवल परिभाषाओं में।
न साज-श्रृंगार से, न चेहरे के नूर से,
वह दमकती है अपने मजबूत गुरूर से।

हाथों में कलम हो, तो लिखे इंकलाब,
तलवार पकड़े, तो बना दे नवाब।
मशीनों को चलाए, खेतों को जोते,
हर मुश्किल को अपने कदमों में तोड़े।

सौंदर्य है उसके विचारों की ऊंचाई में,
जो दिखता है उसके काम की गहराई में।
वह मां है, जो दुनिया को जीवन देती,
वह बेटी है, जो रोशनी हर आंगन में भर देती।

वह पुलिस की वर्दी में सशक्त प्रहरी है,
वह फौज की पंक्तियों में पहली सिपाही है।
वह वैज्ञानिक है, जो चांद को छूती,
वह शिक्षक है, जो दुनिया को सिखाती।

न झुकती है, न रुकती है,
हर परिस्थिति में वह चमकती है।
उसका सौंदर्य उसकी हिम्मत है,
उसके संघर्षों की अमिट कीमत है।

तो छोड़ो पुराने पैमाने, नारी को पहचानो,
उसके साहस, उसकी मेहनत को सम्मान दो।
उसका सौंदर्य है उसकी पहचान में,
जो जले मशाल बनकर हर जहान में।

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