पर्यावरण /मोहिनी

आ रही सौंधी-सौंधी खुशबू ज़मीं से 
करम मेघा का कह रही हूँ यकीं से,

लोट लूँ मुट्ठी भर इसके आँचल तले 
करूं याद लड़कपन के लम्हे हसीं से

आओ सखी, बना लें मिट्टी के घरौंदे 
शायद उभरे मासूमियत यहीं कहीं से।

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