शजर हूँ मैं/: अभिलाषा"स्नेह"

शजर हूँ मैं
पहचानते होंगे तुम मुझे
किन्तु कैसे पहचानेंगे तुम्हारे बच्चे मुझे
वो गूगल करेंगे लेकिन नहीं समझ पाएंगे
क्योंकि तुम्हारी दी हुई परवरिश में मेरा नाम भी नहीं
हालांकि मैं 
सदियों से खड़ा हूँ
संसार के छोर पर 
अक्सर उपेक्षित रहा
तुमने मुझे प्रेम से नहीं देखा
तुम्हारे पूर्वजों की तरह
कभी मुझे सींचने 
की इच्छा नहीं हुई तुम्हारी
तुमने मेरी नस्लों को कुचल दिया
काट दी मेरी टहनियाँ
तोड़ दी उन पर 
खिलती नन्ही नन्ही कोपलें 
बिना ये सोचे 
कि इनमें भी जीवन है
और इनसे ही तुम्हारा जीवन है
खैर,, 
ये तुम्हारा भी दोष नहीं है। 
अभी तुम्हें आवश्यकता है
हमारी हड्डियों की 
ताकि तुम बना सको 
सुंदर सुविधाजनक संसाधन
सजा सको घर को
बढ़ा सको उसकी रौनक! 
फिर भी एक बार सोचो 
अगर मैं समाप्त हो जाऊँ 
तो तुम जीवित रह सकोगे? 
आकस्जन के सिलेंडर से 
कब तक उसमें रह सकेगा 
मेरे फैफड़े का निचोड़
कब तक जी सकोगे 
अगर ऐसे ही समाप्त करते रहे हमें
तो एक दिन तुम भी समाप्त हो जाओगे
और फिर कोई आधुनिकता 
मशीनरी तकनीकि तुम्हें नहीं बचा सकेगी
यदि चाहते हो जीवन की वास्तविक सुविधा
तो समझो मेरी नस्लें बचा लो
शजर हूँ मैं

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