मानव तूने ये कैसा विकास किया /सौम्या मिश्रा 'शायरा'

ईश्वर ने जब यह संसार बनाया

प्रकृति को धरा का श्रंगार बनाया

अपने आँचल में लिए हरियाली,

फिर धरती को सदाबहार बनाया...


मानव तूने ये कैसा विकास किया

काट जंगल प्रकृति का हास किया

सिमटी धरती और सूखी नदियाँ,

ऐसा पाँव पसारा सब नाश किया...


आपदाओं से जब हाहाकार मचेगा

मिलेगी न सांसे मानव तकरार करेगा

सूख जाएंगे जब आँसू पेड़ो के सब,

 हे  मानव  तब तू  अश्रुधार  करेगा...


एक दिन चहु ओर धुन्ध छायेगा

मानव तू हवाओं में जहर पायेगा

तरक्की के पैरों तले रौंद पौधों को,

जब तू बहुत आगे निकल जायेगा...


सूरज की तपन धरती न सह पायेगी

चाहकर भी छाया कहीं न मिल पायेगी

हो जायेंगे खामोश चहकते पंक्षी सब,

बंजर खेतों में फसलें न झूम पायेगी...


यूं ही हरे भरे पेड़ो को कबतक काटोगे

अपनी सुविधा के खातिर धरती को बाटोगे

वक्त अभी भी है यूं न काटो पेड़ों को,

वरना तूम अपने ही पैरों पे कुल्हाड़ी मारोगे...

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