इंतजार/नैना त्यागी

फिर हुआ यूँ कि हम अलग हो गए,
ख्वाब जो देखे थे, सबके चूरे हो गए।
ज़िंदगी जो समेटनी चाही थी, उसके साथ फिर बिखर के रह गई।
वो मनाने ही नहीं आया, और कहानी अधूरी रह गई।

चुप रहूं तो ख़ामोशी के जाल में उलझ जाती हूँ,
बात करूँ तो ख़ुद की बातों में उलझ जाती हूँ।
घर से निकलती तो हूँ काम के लिए,
नज़ारे वो मिले कि तेरी याद में उलझ जाती हूँ।

अब तू जो नहीं है पास मेरे, पर तेरी याद बाकी है,
तेरे दिए टूटे हुए वादों का हिसाब बाकी है।
दिल ऐसा तो नहीं दिया था मैंने तुझे जैसा बिखरा पड़ा है,
इस पर तो अभी तेरा दिया चोट का निशान बाकी है।

तेरे अलावा किसी को अपना दर्द बताना ही नहीं आया,
दिल की कलियाँ ऐसे मुरझाईं कि फिर खिलना ही नहीं आया।
सब कहते हैं मुझसे, "क्यों तू उसका इंतज़ार करती है?"
पर उसके जाने के बाद पता चला कि, घड़ी भी टिक-टिक की आवाज़ करती है।

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