राष्ट्रहित/नैना त्यागी

पहले जब गाँव की चौपाल में चर्चा होती थी,
हर घर से आवाज़ एक ही दिशा में उठती थी,
मज़हब, भाषा, जाति कोई दीवार न बनती थी,
त्योहार सबके होते थे, दिलों में न दूरियां रहती थीं,
दीवाली की रौनक हर रहमान के घर दिखती थी
ईद की सिवइयां हर 'शर्मा' के घर बंटती थीं,
अब तो रंगों में बंट गया मुल्क हमारा ,
 पहले तो ना कभी देश में हरे और भगवे की बात होती थी

ना कोई हमें धकेल सके, ऐसे साथ उठाओ कदम,
ना कोई जाति ना कोई धर्म मिलकर साथ चलेंगे हम,
फ़िर से वही चौपालें गांव की होंगी,
सर्दियां किसी नीम की छांव सी होंगी,
मजहबों की कोई दीवार न होंगी,
जातियों में भी तकरार न होंगी,
खून बहे किसी हिन्दू का तो मुस्लिम की आंखे होंगी नम,
ना कोई जाति ना कोई धर्म मिलकर साथ चलेंगे हम

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