न जाने क्यूँ आजकल अंधेरा जादा है ।
आँसूओ कि भी दोस्ती कि अदा है ।
टुटा फुटा आज हिस्सो में बट गया ।
भुला बिसरा अतीत दिल में बस गया ।
समझौते में शब्द कहीं खो गए।
आदत हो गई, सभी से कट गए।
मायूस सुबह में ,शाम भी बुझ गई ।
रातों के साए में नींद दुर चली गई।
सोच ने अंदर तक खोखला कर दिया ।
सहने कि ताकद ने अकेला कर दिया ।
कोई नही जीसे अपना कहे ।
दर्द को गले लगाए चलते गए।
बीता हुआ कल पुकारता है हमे ।
डबडबाई ऑंखो से धुंदलाता है हमे ।
पुछनेवाले मिले,बांटने वाले कोई नही थे।
परायों कि उस भिड में अपने नही थे ।
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