हमने मोहब्बत में खुद को इतना दीवाना देखा,
अपनी आँखों से बेवफाई का तराना देखा,
जानते थे हर हकीकत उनकी
उनके हाथ में खंजर अपने दिल पे निशाना देखा।
गुज़र रहा था शाम को उनकी गलियों ने मुझसे पूछा,
बदल लिए हो महबूब या महबूबा ने दिल तोड़ा,
याद आ गए वो मोहब्बत के लम्हें,
वो प्यारी बातें, वो जुल्फों की लहरें,
वो हसीं मुस्कराहट, वो नयनों के नखरे,
वो मेहंदी की खुशबु, वो अंखियों के कजरे,
वो मिलने की चाहत, वो घर वालों के पहरे,
कशमकश में थे कि गलियों ने रोका,
अधूरी क्यूँ रह गई चाहत ये गलियों ने टोका,
यादों के सरगम ने मुझको खूब झकझोरा,
उस बेवफ़ा ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा
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