कहीं आकाश निरभ्र है
तो कहीं श्वेत धवल बादलों
के टूकडों से भरा हुआ है
और श्वेत धवल बादलों के बीच में
आकाश रूपी गहरी झील में
खिलता हुआ सोलह कलाओं से
परिपूर्ण चंद्रमा जिसे
श्वेत धवल रूई से बादलों ने
अपने झीने आवरण में
छिपा लिया
चांद को उसकी चांदनी के साथ।
लेकिन फिर एक बार
स्याह बादलों की ओट से
प्रगटा चंद्रमा
अपनी चन्द्रिका के साथ
की तभी श्यामल बादलों के
घने आंचल ने चांद को बिल्कुल ढक
शरद पूर्णिमा को
मावस कर दिया।
और इसी शोक में
प्रकृति ढुलकाने लगी आंसू
और मौन नैश तिमिर में
प्रकृति भी मौन हो गई।
✍🏼 पूर्णिमा मंडल ✍🏼
अनकहे एहसास
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