ये दहेज का कैसा रिवाज चलाया जा रहा है,
बेटियों को दहेज की आग में जलाया जा रहा है,
ये कैसा अनोखा दर्द भरा रिवाज है,
क्या यही तुम्हारा सभ्य समाज है,
ये दहेज की आग बाप की जमीन बिकवा देती है,
ये दहेज की बला रिश्तों में चिंगारी फिकवा देती हैं,
इस दहेज को मांगने के तरीके भी है कई प्रकार के,
कोई मांगता नगद कोई वचन लेता महंगी कार के,
इसकी कोई सीमा भी नहीं ये तो बेहिसाब है,
जिसमें लिखी हो ये रस्म, नहीं ऐसी कोई किताब है,
बाप लगा देता है दहेज में पूरी पूंजी जीवन की,
मगर फिर भी ना तसल्ली होती लोभियों के मन की,
दहेज ना कोई मांग सके ऐसा कोई नया कानून बनाओ,
मत यूं बेवजह बेटियों को दहेज की आग में जलाओ,
दहेज लेना घोर पाप है समझा दो समाज को,
पूर्ण रूप से कर दो खत्म इस झूठे रिवाज को,
ये दहेज इस समाज में एक अभिशाप है,
दहेज लेना ही नहीं देना भी एक पाप है।
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