बेटी की जिंदगी कहाँ आसान होती है/वर्षा सिंह

बेटी हूं ,बेटी की जिंदगी कहाँ आसान होती है,
पग पग पर कांटों में डूबी नय्या होती है,
सपने देखे अगर तो कहाँ पूरे कर पाती है,
आसानी से मिलती नहीं मंजिले बेटियों को,
कुछ को सुरक्षा का भय,कुछ पर परिवार की बंदिशे होती है,
बेटी हूँ,बेटी की जिंदगी कहाँ आसान होती है,
मंजिल पाना है कितना दुर्लभ ,बेटी ही मजबूरियों का शिकार होती है,
दुख को सहकर आसुओं को पीती है,
अपने ख्वाब दिल में दबाकर औरों के लिए जीती है,
बेटी हूँ,बेटी की जिंदगी कहाँ आसान होती है,
अपनों की फ़िक्र में जीवन बिताती है,
बेटी है ,जो खुद को भुलाकर अपनों की खुशियां संजोती है,
बेटी हूं ,बेटी की जिंदगी कहाँ आसान होती है,
फिर क्यों बेटियां इतनी मजबूर होती है,
हर बार क्यों अपनी मंजिल से इतनी दूर होती है,
अगर आबरू नीलाम करने वाला एक बेटा है,
तो बेटियां क्यों घरों में कैद होती है,
हर बार त्याग बेटी ही करे क्यों,
बेटा है आजाद अगर तो बेटी कैद बने क्यों,
समाज की बुराई अकेले बेटी ही सहे क्यों,
दे देते संस्कार बेटे को,
हर बार डर -डर कर बेटी जिये क्यों।

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