ना जाने कितने तटों का अमृत भरकर लाई है,
धरा को अमृतपान कराने को बरखा फिर से आई हैं।
मेघ गरजे मानो कोई विजय घोष हुंकार किया,
बिजली कड़की ऐसे मानो बरखा का श्रंगार किया।
पवन देव भी उसके आने की खबर पहले ही दे आये,
वृक्षों ने भी झूम-झूमकर बरखा का सत्कार किया।
फिर ऐसे बरसी मानो समूचा अमृत पीकर आई है,
माटी को अमृतपान कराने को बरखा फिर से आई है।
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