इश्क के लिए विश्वास,विश्वास के लिए भरोसा, भरोसे के लिए पात्रता,पात्रता के लिए मनुष्य, मनुष्य के लिए समझदारी,समझदारी के लिए ज्ञान, ज्ञान के लिए मस्तिष्क,मस्तिष्क के लिए ऊर्जा, ऊर्जा के लिए भोज, भोजन के लिए वनस्पति, वनस्पति के लिए पशु,पशुओं के लिए भूमि, भूमि के लिए पर्यावरण,पर्यावरण के लिए सूर्य, सूर्य के लिए ईश्वर,ईश्वर के लिए भक्ति, भक्ति के लिए श्रद्धा,श्रद्धा के लिए मनुष्य, मनुष्य के लिए पात्रता,पात्रता के लिए भरोसा, भरोसे के लिए विश्वास,विश्वास के लिए इश्क, अतः इश्क।।
ना जाने कितने तटों का अमृत भरकर लाई है, धरा को अमृतपान कराने को बरखा फिर से आई हैं। मेघ गरजे मानो कोई विजय घोष हुंकार किया, बिजली कड़की ऐसे मानो बरखा का श्रंगार किया। पवन देव भी उसके आने की खबर पहले ही दे आये, वृक्षों ने भी झूम-झूमकर बरखा का सत्कार किया। फिर ऐसे बरसी मानो समूचा अमृत पीकर आई है, माटी को अमृतपान कराने को बरखा फिर से आई है।
हे गुरुवर तुम हमारे जन्म को आकार दो, दूर सब अज्ञान करके एक नया संसार दो, ज्ञान का आलोक फैले इस धरा सुख धाम में, ज्ञान के पंकज खिला दो इस धरा को प्यार दो। हो गई दुनिया अधर्मी, धर्म का मरघट बनी। यह धरा तीर्थ बना दो, धर्म का फिर सार दो। खींचकर अवगुण हमारे, ज्ञान का वरदान दो, कलयुगी इस मन को मेरे, सतयुगी विस्तार दो।
जहां खेत लहराते हैं, पंछी गीत सुनाते हैं, जहां तितलियां मंडराती है, जहां कालिया मुस्कुराती है, जहां बादल जल बरसाते हैं, तालाब कुछ-कुछ सुनाते हैं, जानवर खेल दिखाते हैं, बच्चे तालियां बजाते हैं, जहां हर और वनों की छांव है, यकीनन वह कोई गांव है
आज नया दिवस है, और नया दिवस ही नहीं, नया माह, नया वर्ष भी है, इस सुबह में कुछ नया नहीं, कुछ नहीं जो हुआ नहीं, लोग नए पर बात वही, याद वही पर रात नई, चाल नई पर साज़िश वही, धरती वही पर बारिश नई, मांग नई पर विश्वास वही, नाक वही पर श्वास नई, लोग नए पर गांव वही, पेड़ वही पर छांव नई, लम्हें नए पर यादें वही, लोग वही मुरादें नई, काम नए पर मेहनत वही, रास्ते वही आफत नई, दिन नए मौसम वही, दिल वही धड़कन नई, चिह्न नए रास्ता वही, धर्म वही आस्था नई, परिणाम नए इम्तेहान वही, किरदार वही दास्तान नई, फ्रेम नए तस्वीर वही, मौके वही तक़दीर नई, पल नए आरज़ू वही, फ़ूल व…
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