तूफानों में भी पंक्षियों का हौसला देख,
बचा ही लेती हैं शाखों पर घोंसला देख।
मिलेगी तुझे भी मंजिल यकीनन,
क्यूं घबराता है तू फासला देख?
गिर, संभल, जब चलना सीख ले जमीं पर,
अपना सिर उठा फिर आसमां देख।
तपना पड़ता है मेहनत की आग में,
सॅंवरती नही किसी की तकदीर ऐसे,
थक कर बैठ गए फिर कैसे?
उठो, चलो, क्यूं मन मार रहे हो?
जब जीत सकते हो तो क्यूं हार रहे हो?
चीरकर विपरीत धाराएं भी
बाहर निकल सकते हो तुम,
हे छोटे! अपना वक्त
खुद बदल सकते हो तुम।
क्या बादशाहत पसंद नहीं?
क्या मरोगे तुम भी फकीर जैसे?
थक कर बैठ गए फिर कैसे?..
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