प्रेम एक भाव है मौन शांत स्थिर स्पर्शहीन-सा,
जीवन में रस और सुगंध देकर भी गन्धहीन-सा।
शाश्वत है कभी किसी भी स्थिति में मरता नहीं,
है जगत में कौन ऐसा जो कभी प्रेम करता नहीं?
आकर्षण स्नेह और मोह से पल्लवित होकर प्रेम,
एक दिन जीवन की आवश्यकता-सी बन जाता है।
वह पूर्ण और साकार हो सके तो इससे अच्छा क्या,
किन्तु अपूर्ण हो तो भी बलिदान की उपमा पाता है।
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