प्रेम की वंशी/भारती पंवार

गूंजा था एक प्यार का अफसाना जमाने में,
कि कुशल थे कान्हा प्रेम की वंशी बजाने में,

जब कान्हा की वंशी जग में गरजती थी,
गोपियां उनसे मिलने को तरसती थीं,
आसमां में बिजली कड़कती थी, गांव बरसाने में,
प्रेम की वंशी.......

जब जब कान्हा ने वंशी अधरों पे लगाई,
जब जब राधा को आवाज वंशी की आई,
ना उसने जरा भी देर लगाई,  श्याम के पास आने में,
प्रेम की वंशी ......


सुन वंशी की धुन गैय्या भी दौड़ी आती थी,
गोपिया भी प्रेम दीवानी अपना माखन लूटाती थी,
यही वंशी राधा को श्याम से मिलाती थी, होकर मुग्ध प्रेम तराने में,
प्रेम की वंशी बजाने में।

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