मैने थाम ली कलम अपने हाथों में, कोरी किताबें मुझको पुकारने लगी। मैं दौड़ता हुआ जाने लगा उनके पास, धीरे धीरे उनके हर पन्ने लिखने लगा। कभी दुसरे के दर्द और खुशी को समझकर, धीरे धीरे उनकी भावनाओं को लिखने लगा। कभी खुद के लिए तो कभी दूसरों के लिए, जब भी मौके मिलते रहे तब लिखने लगा। जब-जब विचार आते रहे मेरे मन में, तब-तब हाथ मेरा काम करने लगा। दूसरों की तकलीफों को समझने लगा, मैं किताबों का हर पन्ना लिखने लगा। कभी धूप में कभी छांव में कभी बरसात में, मैं हर पल किताबों का हर पन्ना लिखने लगा। धीरे धीरे कुछ मेहनत करते हुए ही सही, मैं कोरी किताबें…
यह हवाओ का एक बड़ा सा झोंका आया, शीत लहरों का मौसम चारों तरफ छाया। धीरे धीरे शरीर कप उठने लगे लोगो के, जब से यह मौसम चारों तरफ छाया। गर्म गर्म कपड़ों ने शरीर में राहत लाई, जिसे हर कोई धीरे धीरे आजमाया । यह हवाओ का एक बड़ा सा झोंका आया, शीत लहरों का मौसम चारों तरफ छाया। पेड़ो की डालियों ने भी शोर है मचाया, जब से यह मौसम चारों तरफ छाया। धीरे धीरे सभी में परिवर्तन दिखाई देने लगा, राह में चलने वाले अपने घरों में रहने लगा। धीरे धीरे हर किसी के जान पर आफत आई, हर किसी ने ओढ़ ली कंबल और रजाई। जब जब होने लगा एहसास शीत लहरों का, हर कोई धूप सेखन…
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