किस कदर मोहब्बत है तुमसे कैंसे मैं बताऊँगा… तुम मेरे सामने जब आओगी मैं डर से काँप जाऊँगा… कोई तन्हा रहकर भी जी सकता है दुनिया में… अपने नादान दिल को बार बार ये समझाऊँगा… चाहतें होती रहेंगी जब तक क़ायम जहान है… लेकिन मैं अपनी मोहब्बत तुमसे कैंसे जताऊँगा… रोऊँगा तहेदिल से मग़र ख़ुश दिखूँगा… नम नहीं होंगी आँखें ख़ुद को मैं इतना सताऊँगा… तूँ जब चला जायेगा ये शहर वीरान करके आनंद… दिल सोचकर घबराता है कि फिर कब तुझे देख पाऊँगा…
जहान में मंज़र-ऐ-ग़म से लड़कर आये हैं… हम ज़मीं पर आसमाँ से उतरकर आये है… ला-हासिल ज़िंदगी को पाने के लिये… हम दुनिया की मुसीबतों से गुज़रकर आये हैं… इक वफ़ा पाने के ख़ातिर हम… आँसुओं के मोती से सँवरकर आये हैं… मोहब्बत कब कहाँ कैंसे बाँटनी है… दुनिया जहान की बातों को समझकर आये हैं… एक तेरे इश्क़ को पाने के ख़ातिर आनंद… हम उस ख़ुदा से लड़कर ज़मीं पर आये हैं…
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