आँधी आए तूफ़ाँ आए,हो तेज़ धूप बरसात रहे। अपने साए में ले समेट,घर की छत सब चुपचाप सहे। इक उसके होने से ही,महफ़ूज़ है घर का हर कोना । कुछ ऐसा ही होता है घर में, माँ और बाबा का होना।
मन के शांत समंदर मे भी कभी कभी आ जाती है सुनामी ..... बड़े जोरों से उछल उठता है उन भावनाओं का प्रवाह जो कभी समझौते की वेदी पर कर दी गई थी होम ... दूर तक जाती हैं लहरें करने तहस नहस वो सब कुछ जिसे संयम ने बड़े ही श्रम से अब तक साध रखा था । कुछ देर का तूफान.... फिर शांति , और रह जाते है टूटे फूटे अवशेष कितनी ही यादों और अरमानों के... मन के शांत समंदर मे भी कभी कभी आ जाती है सुनामी .
कोहरा, धुँध, ठंडक... और तेज हवाओं को लेकर, ये सर्द मौसम जब भी आ जाता है.. मन पर भी कोहरा सा छा जाता है...... उसे भी फिर कुछ नजर नहीं आता, क्या चाहता है समझ नहीं पाता, रहता है स्मृतियों में गुम, निष्क्रिय और सुस्त.... भावनाएं भी हो जाती है कुछ सुसुप्त.. और सब कुछ लगता है अधूरा अधूरा....... ऐसे में तुम्हारा आना... जैसे सर्दियों मे कभी धूप निकल आती हैं..... पिघलती है फिर कोहरे की चादर.. मिटने लगती है शुष्कता.. मन फिर से हो उठता है उष्ण .. उमड़ने लगता है भावनाओं का प्रवाह.. हवा में घुलती गर्माहट की तरह... और लगता है अब जिंदगी पूरी है.... तुम्हार…
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